नारी......
*पुरुष और स्त्री की अपने -अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण भूमिका है एक दूसरे के अस्तित्व की स्थिति एक दूसरे की सोभा आदि संभव है । एक के अभाव में दूसरा कोई महत्त्व नहीं रखता । स्त्री - पुरुष समान भूमिका का दर्शन वैदिक काल मे बड़े ही व्यवस्थित रूप में था । पुरुषों की तरह ही स्त्रियां भी स्वतंत्र थी जीवन के सभी क्षेत्रों में भाग लेती थी । राजनीति , समाज , धर्म सभी मे नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान था । कोई भी कार्य नारी के अभाव में पूर्ण नहीं माना जाता था । शिक्षा , संस्कृति में उनका समान अधिकार था ।*
*जिस कुल में स्त्रियां की पूजा होती है, उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं तथा जहाँ नारियों का सम्मान नही होता , उन्हें पूज्यभाव से नहीं देखा जाता , वहाँ सारे फल , क्रियाएं नष्ट हो जाती हैं।*
*परिस्थितियों के बदलने के साथ ही नारी जीवन की दुर्दशा शुरू हो गई और कालांतर में उसकी स्वतंत्रता , समानता , आदर के अधिकार छीनकर उसे घर की चहारदीवारी , परदों की ओट में बंद कर दिया गया । बाह्य आक्रमणों के काल मे भारतीय नारी जीवन की भारी दुर्दशा हुई और नारी का गौरव, सम्मान , अधिकार सब छीन लिए गए नारी एक निर्जीव गुलाम की तरह पीड़ित की जाने लगी उसका दमन होने लगा।*
*नारी का परिवार में जो गृहलक्ष्मी , गृहणी का स्थान था , वहाँ उसे सास , ससुर , पति , देवर , ननद , जेठानी के अत्याचारों के सामना करना पड़ा । पति के मर जाने पर उसे राक्षसी , कुलटा , दुराचारिणी कहा जाने लगा अथवा सती के नाम पर जीवित ही ज्वाला में झोंक दिया गया । समाज मे किसी व्यक्ति को देख लेना , बात - चीत कर लेना उसके चरित्र का कलंक समझा जाने लगा ।*
*मानव जीवन का अर्द्धांग वेकार , हीन , अयोग्य बन गया । आधे शरीर पर लकवा दौड़ जाने पर सारे शरीर का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है । हमारे सामाजिक पतन का मुख्य कारण स्त्रियों की यह दुरवस्था भी रही है।*
*राष्ट्र को विकास और स्वतंत्रता की नई प्रेरणा देने वाले महापुरुषों ने इस कमी को अनुभव किया और समाज को सशक्त , सबल बनाने के लिए स्त्रियों के अधिकारों की नई परिभाषा की तथा उनके शोषण , दुरवस्था , उत्पीड़न को बंद करके पुरूष के समान अधिकार देने का पूरा -पूरा प्रयत्न किया । राजा मोहन राय ने सतीप्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई । महर्षि दयानंद ने नारी के अधिकारों का व्यापक आंदोलन चलाया । स्वामीविवेकानन्द ने समाज को चेतावनी दी कि जिस देश , राष्ट्र में नारी की पूजा , उसका सम्मान नही होगा वह राष्ट्र समाज कभी भी उन्नत और महान नहीं हो सकता ।*
*इन सभी प्रयत्नों के बावजूद अभी भारतीय नारी अपने लक्ष्य से बहुत ही पीछे है । पर्दाप्रथा , दहेज , लड़के -लड़कियों में असमानता का भाव आदि कुछ कम अभिशाप नहीं हैं।, नारी के लिए । अब भी भारतीय स्त्रियां की बहुत बड़ी संख्या घर की चहारदीवारी के भीतर कैद है । उन्हें सदाचार , शील आदि का बहाना लेकर पर्दे , बुरका आदि में बंद कर रखा । जिस पौधे को पर्याप्त प्रकाश , हवा नही मिलती व्व मुरझा जाता है ।*
*हमारे पारिवारिक जीवन मे नारी पर घर वालों के द्वारा होने वाले अत्याचार अब भी बने हुए हैं। उसे सताया जाता है ताड़ना दी जाती है भारतीय नारि का जीवन का ही भी बहुत बड़े क्षेत्र में अविकसित पड़ा है यह हमारे सामाजिक जीवन , पुरुष अर्द्धांग की विकृति है , जिसने सारी प्रगति को ही अवरुद्ध कर रखा है । अंधपरंपरा , अंधविश्वास , रूढ़िवाद , व्यर्थ के अभिमान को त्यागकर नारी को उसके उपयुक्त स्थान पर प्रतिष्ठित करना आवश्यक है।*
*हमने इतना प्रयास किया है कि भारत के हर प्रदेशो की महिलाओं को एकत्रित किया हूँ और कई समूहों में उन्हें जोड़ा हूँ जिसमे केवल महिलाओं ही हैं वहां महिलाएं कॉसे जागृत हो और वो अपने स्वरूप को कैसे पहिचाने तथा वो कैसे कर्म करें जिससे राष्ट्र समाज मे उन्नति हो उन्हें वहां अपने तुक्ष विचार देता हूँ।*
*जिस कुल में स्त्रियां की पूजा होती है, उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं तथा जहाँ नारियों का सम्मान नही होता , उन्हें पूज्यभाव से नहीं देखा जाता , वहाँ सारे फल , क्रियाएं नष्ट हो जाती हैं।*
*परिस्थितियों के बदलने के साथ ही नारी जीवन की दुर्दशा शुरू हो गई और कालांतर में उसकी स्वतंत्रता , समानता , आदर के अधिकार छीनकर उसे घर की चहारदीवारी , परदों की ओट में बंद कर दिया गया । बाह्य आक्रमणों के काल मे भारतीय नारी जीवन की भारी दुर्दशा हुई और नारी का गौरव, सम्मान , अधिकार सब छीन लिए गए नारी एक निर्जीव गुलाम की तरह पीड़ित की जाने लगी उसका दमन होने लगा।*
*नारी का परिवार में जो गृहलक्ष्मी , गृहणी का स्थान था , वहाँ उसे सास , ससुर , पति , देवर , ननद , जेठानी के अत्याचारों के सामना करना पड़ा । पति के मर जाने पर उसे राक्षसी , कुलटा , दुराचारिणी कहा जाने लगा अथवा सती के नाम पर जीवित ही ज्वाला में झोंक दिया गया । समाज मे किसी व्यक्ति को देख लेना , बात - चीत कर लेना उसके चरित्र का कलंक समझा जाने लगा ।*
*मानव जीवन का अर्द्धांग वेकार , हीन , अयोग्य बन गया । आधे शरीर पर लकवा दौड़ जाने पर सारे शरीर का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है । हमारे सामाजिक पतन का मुख्य कारण स्त्रियों की यह दुरवस्था भी रही है।*
*राष्ट्र को विकास और स्वतंत्रता की नई प्रेरणा देने वाले महापुरुषों ने इस कमी को अनुभव किया और समाज को सशक्त , सबल बनाने के लिए स्त्रियों के अधिकारों की नई परिभाषा की तथा उनके शोषण , दुरवस्था , उत्पीड़न को बंद करके पुरूष के समान अधिकार देने का पूरा -पूरा प्रयत्न किया । राजा मोहन राय ने सतीप्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई । महर्षि दयानंद ने नारी के अधिकारों का व्यापक आंदोलन चलाया । स्वामीविवेकानन्द ने समाज को चेतावनी दी कि जिस देश , राष्ट्र में नारी की पूजा , उसका सम्मान नही होगा वह राष्ट्र समाज कभी भी उन्नत और महान नहीं हो सकता ।*
*इन सभी प्रयत्नों के बावजूद अभी भारतीय नारी अपने लक्ष्य से बहुत ही पीछे है । पर्दाप्रथा , दहेज , लड़के -लड़कियों में असमानता का भाव आदि कुछ कम अभिशाप नहीं हैं।, नारी के लिए । अब भी भारतीय स्त्रियां की बहुत बड़ी संख्या घर की चहारदीवारी के भीतर कैद है । उन्हें सदाचार , शील आदि का बहाना लेकर पर्दे , बुरका आदि में बंद कर रखा । जिस पौधे को पर्याप्त प्रकाश , हवा नही मिलती व्व मुरझा जाता है ।*
*हमारे पारिवारिक जीवन मे नारी पर घर वालों के द्वारा होने वाले अत्याचार अब भी बने हुए हैं। उसे सताया जाता है ताड़ना दी जाती है भारतीय नारि का जीवन का ही भी बहुत बड़े क्षेत्र में अविकसित पड़ा है यह हमारे सामाजिक जीवन , पुरुष अर्द्धांग की विकृति है , जिसने सारी प्रगति को ही अवरुद्ध कर रखा है । अंधपरंपरा , अंधविश्वास , रूढ़िवाद , व्यर्थ के अभिमान को त्यागकर नारी को उसके उपयुक्त स्थान पर प्रतिष्ठित करना आवश्यक है।*
*हमने इतना प्रयास किया है कि भारत के हर प्रदेशो की महिलाओं को एकत्रित किया हूँ और कई समूहों में उन्हें जोड़ा हूँ जिसमे केवल महिलाओं ही हैं वहां महिलाएं कॉसे जागृत हो और वो अपने स्वरूप को कैसे पहिचाने तथा वो कैसे कर्म करें जिससे राष्ट्र समाज मे उन्नति हो उन्हें वहां अपने तुक्ष विचार देता हूँ।*
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