भारतकी नजरमें चीन....(कुछ कवितायें)

सबसे पहले मेरी कविता ...

भारतकी नजरमें है चीन
एक बड़ा अपराधी नामचीन... ...टेक

बैठता है बाते करता है
पीठ पीछे वार करता है

नफ्फट बड़ा, नीच बड़ा
नंगा हो के रहे खडा

मुखमें राम बगलमैं छूरी तेरी
ईस जहाँमैं तूं सबसे हीन...1.भारतकी नजरमें...

पूरी दुनियाको हिलाया
उसीने कोरोना फैलाया

सस्तेंकी लालच देकर
सबको है फसाया

लेह हमारा, लदाख हमारा
कोई न शकेगा उसे छीन...2.भारतकी नजरमें ...

क्या है ओकात उसकी
अगर हमने रोक लगाया

चीन तेरा क्या होगा ?
जब हम होंगे खिन्न

अब भर गया है तेरे दिन
एक,दो,तीन...तु रे गिन...3.भारतकी नजरमें ...



रचयिता  :
श्री जयंतीभाई आई.परमार
आणंद, गुजरात
मोबाईल नं.997978343



1.

भारत की नजर में चीन
******************

हिन्द चीन भाई भाई
अब कह दो बाई बाई!!
धोखेबाज बरसों बरस
   नोन तेल बिच राई

छोटी आँख ठगिया चमक
जान सका ना कोई!
चील फिरे आकाश में
जल तह मछली पाई!!

तकनीकी तेरा ज्ञानभी
तेरी ही परछाई!
चीनी चीजें क्षण महि
टूट बिखर ही जाई!!

अभिमन्यू की नियति थी
टूटे चक्रव्यूह नाईं!
भारत अर्जुन है मेरा
तू दुर्जन किस ठाईं!

अब तो तेरी खैर ना
जागे शहर और गाँव!
कुटिल नीति अब ना चले
नीम पीपल की छाँव!!

हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर महाराष्ट्र 440010

2.

भारत की शक्ति और दग़ाबाज चीन

      विश्व गगन पर   उभर रहा है आत्मनिर्भर भारत
      भारतीय शक्ति की दुनियाँ में फैली शौहरत

       सैनिक वीर जवान हमारे, चीन की गर्दन तोड़ी
        छक्के छूटे चीनियों के मुँह की उसने खायी
         बौराया ये चीन है देखो एक पाँव से लंगड़ा....

        अगर घुसे दुश्मन घाटी में, नामों निशां मिटा देंगे
         सुन दहाड़ हिल उठे धरातल ऐसा सबक सिखा देंगे
          धोका देकर, झूंठ बोल आहत है किया दुनियाँ को.....

         आँख उठाकर जो भी देखे ऐसे अरि के सिर से
          भारत माँ, श्रंगार करेंगे अरि मुण्डों से फिर से
          हम दीवाने रुक न पाये ग्रहण लगायें उनको....

          नहीं रहा अभिमान रावण का, चीन तू क्या है चीज
          रीढ़ की हड्डी तोड़ के रख दी क्रोधानल ने आज
          चालबाज़ शैतान को मारा, वाह !रे हिंदुस्तान.....

3.

भारत की नजर मे चीन

हम तो मानते थे चीन
को अपना ही भाई
चीन तो कर रहा है भारत
वासियों की ही बुराई

चीनी ने देखो संकट
की घडी है लाई
हर तरफ युद्ध की निती
उसने देखो फैलाई

चीनी तेरे डर से नही
डरेगा भारत वासी कोई
निडरतासे सामना करेंगे
मत समज डर जायेगा कोई

हम नही अपनायेंगे चींनीवस्तू
सब चीनी वस्तू बिखर गई
स्वदेशी वस्तू की किंमत हमारे
 मन मे बहुत-बहुत बढ गई

तेरी व्यूहरचना तोडेंगे हम
सब भारत के हम सिपाई
हिम्मत से सामना करेंगे
नही करेंगे ला परवाई.

अनोमा मालसमींदर.
परभणी.

4.

जनता की निगाह में ड्रैगन
बच्चों के लिए एयरगन
नेताओं के लिए एक आयोजन।

गरीब के लिए मोबाइल सस्ता
मध्य म वर्ग को नूडल्स खस्ता
विद्यार्थियों को किताबों का बस्ता।

चीन एक लम्बी दीवार है
आपसी रिश्तों में पड़ती मार है
इसके कारण हमारा मजदूर बेकार है।

चीन रोग है, शोक है, कर्ज है
ठीक न हो सके ऐसा मर्ज है
चिकना चुप डा पड़ोसी बहुत खुदगर्ज है।

बहिष्कार की इसके होंगी बहुत बातें
नेता करार करते, करते अनेक घातें
क्योंकि चीनी व्यापारी इन्हें देते खूब सौगातें।

रचनाकार -
  प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
  गोधरा ( गुजरात)  389001
 मो - 9426387438
  ईमेल- gaur.dsgaur.devakar@gmail.com

5.

शीर्षक: मान जा ना...

कह रहा हूं मान जा
वरना फिर इतिहास रचा जाएगा
देख पड़ोसी है
वही बनकर रहा कर
वरना पटखनी पुनः खाएगा,

कितनी बार बताऊं
बता कितना तुझे समझाऊं
कहा अपनी हदों में रह
ना छेड़खानी कर
शरहद है को दोनों के बीच
उस पर जरा अमल कर,

सुधारने के मौके कई दिए हैं
अब बार बार ये भी न होगा
सैनिकों का लहू बहा रहा है
उसका फिर सीधा हिसाब होगा
कद भी तेरा तो सीने तक
भारतीय सैनिकों के आता है
आजमाइश कैसी है ये
आंखों का शोला देखने में
तू हर बार सिर से
सम्मान अपना गिरा बैठता है,

किस बात की अकड़ है
जरा हमें भी बता तो दे
पिछला भूल गया हो तो
औकात अपनी अपने आकाओं से
फुर्सत में कभी पूछ तो ले
कितना छेड़ेगा तू भी अब
उठ गया जिस पल हमारा सैनिक
गरजना से ही दुबक बैठेगा तू तब,

समझता है खुद को शूरमा
बात ताज की करता है
नजरें मेरे वतन की मिट्टी पर
क्यों नापाक अपनी रखता है
जरा भी नसीब ना होगा
व्यर्थ कल्पना करता है
मेरे भारत के सपूतों की
धरा को कैसे अपना कहता है,

चेता रहा हूं
अब भी संभल जा
वरना अब भयंकर होगा
दुनिया तो युद्ध कहती है उसे
पर तेरे साथ तांडव होगा
तेरे सोचने तक तेरा
धड़ अपना पता खो देगा
जो छोटी सी काया बचेगी तेरी
उसे मेरे देश का
पंछी नोच नोच खिंचेगा,

थम जा ठहर जा
जिस गलत राह पर है
प्रलय से पहले मुड़ जा
वरना हमारी कोई गलती न होगी
पर तेरी कहानी से ही
शीर्षक की संज्ञा गायब होगी
फिर ढूंढता फिरता वजूद अपना
शरहद पर ही तेरे धड़ से
तेरे लहू की धार बह रही होगी
और भारत की आबादी
जयकारा लगाते नांच रही होगी।

.............................
नरेश सिंह नयाल
देहरादून उत्तराखंड
26-06-2020
Mobile..9719564581
E-mail... nareshfit@gmail.com

6.

ड्रेगन होश में आजा

शान्ति प्रिय है देश हमारा, भारत सबका साथी है
मेरे भारत की मिट्टी से प्यार की खुशबु आती है

वक़्त कभी आया मुश्किल तो विश्व का हमने साथ दिया
कोई प्यार से सामने आया दोस्ती का उसे हाथ दिया

लेकिन किसी ने गर हमें छेड़ा उसे ना हम कभी छोड़ते है
देश के वीर सिपाही गर्दन उस दुश्मन की मरोड़ते है

अपनी इक इक इंच भूमि की रक्षा करना जानते है
तेवर गर कोई दिखलाये दुश्मन हम उसको मानते है

ड्रेगन तूने क्या सोचा है तू भारत को हरायेगा
भारत माँ का हर बेटा तुझे नाकों चने चबवायेगा

तूने बीस को मारा था और हमने मारे तेरे पचास
सुन ओ मूर्ख चीन अभी भी रखता है तू जीत की आस

होश में आजा अब भी वरना बाद में तू पछतायेगा
देश मेरे का सैनिक तेरे दस दस मार गिरायेगा

पूरे विश्व में तुमने ही यह महामारी फैलाई है
दुनिया भर में लाशों की बारिश तुमने करवाई है

सारा विश्व है साथ हमारे तू तो अकेला नाचेगा
मुँह की जब खायेगा अपने आप मैदान से भागेगा

धोखेबाज़ है ड्रेगन तू यह सारी दुनिया जानती है
तेरे इरादे भरे फ़रेब से यह भी दुनिया मानती है

दो दमदार दोस्त है मिलकर करेंगे तेरा काम तमाम
मिट जायेगा ड्रेगन फिर इस दुनिया से तेरा नामोनिशान

सुदेश मोदगिल नूर
स्वयरचित मौलिक रचना
१०८, जी एच-३४, सेक्टर-२० पंचकूला हरियाणा
मोबाईल न ९७७९७९४००८

7.

गजल

है नमन सारे शहीदों को शहादत के लिए
चीन में लडते हमारी जो हिफाज़त के लिए

पीठ पीछे रात को सोए हुए को मार दे
चीन को आती नहीं ह लाज हरकत के लिए

चाल बाजी चीन हमसे घात करते तुम यहाँ
बीस सैनिक मार डाले यूं हुकूमत के लिए

दूसरे देशों में भी खुद का बडा बाजार हो
धन कमाने में खो गया सारी नियामत के लिए

देख सस्ता रोज बेचे चीन अपने माल को
काम उसने तो निकाला नित जरूरत के लिए

है  खडी़  सेना  हिफाजत के लिए ये रात दिन
कर इबादत सैनिकों की तू सलामत के लिए

आज दीपा कह रही तुमने बहाया खून तो
माफ कैसे अब करे तुमको इस बगावत के लिए

दीपा परिहार
जोधपुर (राज)

8.

चीन पर मुकरियां
**************
यह काव्य की बहुत पुरानी विधा है। नायिका पहली तीन लाईनों में ऐसी बातें कहती है मानो अपने साजन के बारे में कह रही है और अगली लाईन में अपनी बात से मुकर कर कुछ और नाम ले लेती है। यह एक मनोरंजक काव्य विधा है। आँचलिक बोली भाषा के शब्द बडे़ सुहावन लगते हैं। तो प्रस्तुत हैं गिरगिट चीन पर मुकरियां - - -
::पुरानी काव्य विधा
********************

बरसों ठगुआ ने साथ बिताए
छोटे-छोटे नैनों से बैरी लुभाए
बोली बोले कैसी मिनमीन
हे सखि-- साजन?
ना सखि-- चीन!

कलमुंहा चुन चुन भेंट लै आवै
दोई दोई दे और एक गिनावै
जगत भरोस मुआ जीत लीन
हे सखि-- साजन?
ना सखि - - चीन!

घर घर आए करे प्रिय बतियाँ
गले लगाय छींके असगुनियाँ
घर घर कीट कीट करि दीन
हे सखि--- साजन?
 ना सखि--- चीन!

भोली सुरत बनावै ठिगुना
कहे मीत बिन भाए कछु ना
लबरा बहुत बजाई बीन
हे सखि-- साजन?
ना सखि--- चीन!

बातन में ना उसके आउं
अबके हाथ उसे जो पाऊं
लेऊं मुखौटो उसको छीन
हे सखि--- साजन?
ना सखि---चीन!

एक पग बैरी बढन ना  दूँ
देहरी पार अब करन न दूँ
विनती लाख करे बन दीन
हे सखि-- साजन?
ना सखि-- चीन!

हेमलता मिश्र "मानवी"
अभ्यंकरनगर
 नागपुर महाराष्ट्र 440010

9.

वीर सपूत शहीदों पे
अभिमान करता है वतन
भारत के रण वीरों को
शत शत करता आज नमन

जोश दिल में था भरपूर
डरकर मुंह मोड़ा नहीं
सरज़मीन से हिले नहीं
जब तक साँस छोड़ा नहीं
अड़े रहें वे डटे रहें
सैनिक शहीद माटी में
खूं से लिख गये नाम वे
वीर गलवान घाटी में
माँ भारती की लाज को
बचाने को ओढ़ा कफ़न
भारत के रण वीरों को
शत शत करता आज नमन

ड्रैगन तू कायर है जो
सोये सैनिक मार दिए
धोखेबाजी से तुमने
पीठ पीछे वार किए
खून का बदला खून हो
फौजों को खुली छूट दो
ड्रैगन को दिखा दो शक्ति
अब ऐसा इक सबूत दो
माटी तेरे लालों को
शीश झुकाता आज छगन
भारत के रण वीरों को
शत शत करता आज नमन

वीर सपूत शहीदों पे
अभिमान करता है वतन
भारत के रण वीरों को
शत शत करता आज नमन

छगनराज राव "दीप"
जोधपुर

10.

चीन तू तो निकला बहुत ही विश्वासघाती है।
छुरा घोंपता  पीठ में  और  बताता साथी है।।
            सीमा पर आकर अपना,
             डेरा     जमा     लिया।
            सिंहों  की  मांद में हाथ,
             सिंह  को  जगा  दिया।
समझा हमारी जमीं को क्या अपनी थाती है।
चीन तू तो  निकला बहुत ही विश्वासघाती है।।
             व्यापार  करता है आकर,
              हमारे    ही    देश    में।
              नाग बन डस रहा हमें ही,
               मानव   के   भेष     में।
भारत- वीरों के समक्ष दानवता  भी थर्राती है।
चीन तू तो  निकला  बहुत ही विश्वासघाती है।।
               छल कपट करता आया,
               शस्त्र  हीन  पर  वार करे।
               यह भूमि सिंहों  का डेरा,
               शत्रुओं   का संहार  करे।
अनल विशिख बन बरसे सेना यह धूल चटाती है।
चीन  तू  तो  निकला  बहुत  ही   विश्वासघाती है।।

 डा. साधना तोमर डी. लिट.
मधुबन कालोनी, गली नं.02
कैनाल रोड़, बड़ौत (बागपत)
उत्तर प्रदेश   250611

11.

भारत की शक्ति और दग़ाबाज चीन

      विश्व गगन पर   उभर रहा है आत्मनिर्भर भारत
      भारतीय शक्ति की दुनियाँ में फैली शौहरत

       सैनिक वीर जवान हमारे, चीन की गर्दन तोड़ी
        छक्के छूटे चीनियों के मुँह की उसने खायी
         बौराया ये चीन है देखो एक पाँव से लंगड़ा....

        अगर घुसे दुश्मन घाटी में, नामों निशां मिटा देंगे
         सुन दहाड़ हिल उठे धरातल ऐसा सबक सिखा देंगे
          धोका देकर, झूंठ बोल आहत है किया दुनियाँ को.....

         आँख उठाकर जो भी देखे ऐसे अरि के सिर से
          भारत माँ, श्रंगार करेंगे अरि मुण्डों से फिर से
          हम दीवाने रुक न पाये ग्रहण लगायें उनको....

          नहीं रहा अभिमान रावण का, चीन तू क्या है चीज
          रीढ़ की हड्डी तोड़ के रख दी क्रोधानल ने आज
          चालबाज़ शैतान को मारा, वाह !रे हिंदुस्तान.....

12.

*विश्व कल्याणकारी भारत और घातक चीन*

मेरे भारत के लोगों ने, सर्वदा विश्व कल्याण किया।
पर चीनी ने कोरोना से, दुनिया वालो का प्राण लिया।।

इतिहास यही कहता हमको, भारत का सब कुछ खोया था।
मेरे भारत का ज्ञान अमर है, हाँ कभी नही ये सोया था।।

जब ह्वेनसांग शिक्षा पाने, मेरे भारत में आया था।
हमने उसको शिक्षा देकर, अपना कर्तव्य निभाया था।।

कहते है युद्ध कलिंगा का,जब चरम काल में था आया।
तब देख तबाही का मंजर, सम्राट अशोका घबराया।।

हाँ! अशोक बर्बर शासक था, वो सभ्य बना धीरे धीरे।
बुद्ध ज्ञान से जीवन उसका, हाँ! लभ्य बना धीरे धीरे।।

लेकिन चीन कहाँ सुनता है, बुद्ध ज्ञान को ठुकराता है।
जब देखो तब तानाशाही, युद्ध ज्ञान को अपनाता है।।

ये तब भी इतना बर्बर था, ये अब भी इतना बर्बर है।
जो धीरे धीरे तड़पाती, ये वो ही मीठी शक्कर है।।

इसने हमको प्राचीन युगी, गाँवों वाला भारत समझा।
इसको ये मालूम नही क्या? मंगल पर है अपना झंडा।।

ड्रैगन को क्या मालूम नही, शेरावाली की धरती है।
भारत में छोटी सी बच्ची भी शेर सवारी करती है।।

रावण जैसे लोगों को हम, राम की तरह समझाते हैं।
गर नहीं मानता है तो फिर,हाथों में तीर उठाते हैं।।

हमला हमने जो बोल दिया , तो आँखे ये खुल जाएगी।
हस्ती तेरी है मिट्टी से और मिट्टी में मिल जाएगी।

कमल पुरोहित "अपरिचित"
कोलकाता, पश्चिम बंगाल

13.

धोखे से  हमला कर देता
बदनीयती इसके रग- रग में ।
कथनी करनी भेद अलग है
चालाकी इसके पग- पग में ।।

हिंदी - चीनी  , भाई - भाई
ऐसा कहीं नही  दिखता है।
कटुता को धारे वो हिय में
दुश्मन के सम ही दिखता है ।।

अर्थव्यवस्था को सम्हालने
चीनी उत्पादों को त्यागो ।
अभी समय है , बनो स्वदेशी
ठोकर खाली अब  तो जागो ।।

सीमा पर आतंक बनाता
समझौता पालन न करता ।
सबको भड़का कर ये केवल
सैन्य बलों को क्षति पहुँचाता ।।

ऐसे  सारे  पड़ोसियों को
सबक सिखाना होगा ही ।
अपनी सीमा को मजबूती
हमको  देना होगा ही ।।

******
छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर (म.प्र.)

14.

जिसे हमने अपने मित्र की तरह पाला सदा।
जिसके दुष्कर्मो को हमने नज़र अंदाज़ किया सदा।।
आज वही हमारी ओर आंखे दिखलाता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो ,
एक दिन अपना रंग दिखाता है।।

पड़ोसी की तरह हमने सदा ही साथ निभाया है,
अपना ज्यादातर वक़्त उसकी सेवा में बिताया है,
उसने एक बार नही कई बार हमें हर मोड़ पे सताया है,
फिर से एक बार गिरगिट ने रंग दिखाया है।।

हमने तो दिया हर कदम शांति का परिचय,
उसको लगता रहा कि हमें हैं उससे भय,
अच्छाई का फल सदा दुख ही दिखलाता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अपनो से बढ़कर जिसे आजतक हमने पूजा है,
हमारा तो ध्येय अतिथि देवो भव ,कोई और न दूजा है।
फिर भी नमक हलाल को सन्मार्ग न सुझा है,
अपना कहकर अपना ही अपनो को सताता है,
शत्रु कितना भी क्यों न मीठा हो,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अपने ही वचन का उल्लंघन हर दम वो करता है,
अपनी हर जरूरत को वो हम से पूरी करता है।।
फिर भी वो कपटी, हमको ही घुर्राता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो ,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अब सावधान हो जाओं तुम,
हुम पहले जैसे दयावान नहीं,
बुरी नज़र वाले का अपने देश मे,
होता कोई सम्मान नहीं।
ये भारत भी अपनी शक्ति का एहसास दिलाता है,
रंग बदलने वालों को, उसकी औकात दिखाता है।।

बहुत हुआ अब साथ निभाना,
अब जरूरी है कदम बढ़ाना।
ईंट का जबाब ईंट से  देना ,
देखेगा बदलता इतिहास जमाना।

तेरी अकड़ को प्यारे तोड़ कर रख देंगे हम,
घमण्ड यहाँ टिकता नही किसी का ,
तुझे चूर -चूर कर देंगे हम।
जो तुझे है अपनी सेना पर घमण्ड,
 तो हम भी हटने वाले नहीं।
जो भिड़ंत इस बार यदि होगी,
तो तू कहीं दिखने वाला नहीं।।

चोरी ,डकैती और छीना- झपटी,
तेरा हमेशा ही शौक रहा ,
अपनो के साथ रहकर तू हमेशा,
अपनों में ही छुरा घौप रहा।।

तेरी भी कमीं नही ,तेरी फितरत ही ऐसी है,
तू तो अपनो का ही नहीं,
तेरी अपनो की हालत भी फकीरों जैसी है,
चल संभल जा है वक़्त मिला,
जो बात तुझे समझ आ जाये,
भारत से पंगा लेगा फिर भारत कोहराम मचाये  ।।




जितेन्द्र शर्मा( आपका जीत दिल जीत)
Mob 8057377686
ग्राम व पोस्ट जैतरा
धामपुर (बिजनौर)

15.

  रघुराज सिंह कर्म योगी
  सफलता चरण चूमेगी
  सफलता चरण चूमेगी
  मन में है विश्वास,
  हमारे उर में है विश्वास।
  जय बजरंगबली बोलो जय बजरंगबली....।

   शत्रु सीमा पर चढ़ आया,
   रणचंडी का तिलक करो।
   उठो सपूतो भारत मां के,
   कृष्णा बन संहार करो।
   अहंकार को हम तोड़ेंगे।
   देंगे गहरे घाव।
    मन में है विश्वास।
    हमारे उर में है विश्वास।
    सफलता चरण चूमेगी।
    सफलता चरण चूमेगी।
    जय बजरंगबली।बोलो जय बजरंगबली.....2

    गलवान नदी की धारा तक,
    पूरा लद्दाख हमारा है।
    याद दिला दो दूध छठी का,
    गद्दार चीन ललकारा है ।
    अब न बचेगी डूब जाएगी ,
     जिनपि'ग तेरी नाब।
     मन में है विश्वास।
     हमारे उर में है विश्वास।
     सफलता चरण चूमेगी।
     सफलता चरण चूमेगी।
    जय बजरंगबली।बोलो जय बजरंगबली....3

    बच्चा बच्चा बोल रहा है,
    जहर बैर का घोल रहा है।
    कब्र खोद देंगे घाटी में,
    किस घमंड में डोल रहा है?
    सोता सिंह जगाया तूने,
    पकड़ेगा तू पांव।
    मन में है विश्वास।
    हमारे उर में है विश्वास।
    सफलता चरण चूमेगी।
    सफलता चरण चूमेगी।
    जय बजरंगबली ,बोलो जय बजरंगबली....4
नोट- रचना अप्रकाशित और मौलिक है।
पता- 1059/B, 3rd एवेनयू ,
       आदर्श कॉलोनी, डडवाड़ा,
        कोटा जं. 324002
Mo.- 8118830886
         8003851458

16.

जब भारत लगा हुआ था कोरोना से,
अपने देश को बचाने में।
कपटी-चीन लगा हुआ था,
युद्ध-सामग्री जुटाने में।
छल-कपटी चीन ने,
भारत की आँख में धूल झोंकी।
विश्वसीयता और शक्तिशाली नेतृत्व,
है भारत की पूँजी।
कपटी-चीन तू चाहें कर ले,
कितनी ही अनीति।
भारत के पास है,
तुझसे लड़ने को चाणक्य-नीति।
ए धूर्त चला जा खेमे में अपने,
हम हैं हिंदुस्तानी,
 जानते ईंट का जबाव,
पत्थर से देना।
छ्ल-कपट करने वाले,
खुद ही अपने मकड़-जाल में फँसते जाते।

मेरी स्वरचित व मौलिक रचना है।
डॉo विजय लक्ष्मी


17.

सियासती गिद्ध के पंजों में शिकार की तरहा फस के रह गया है हिंदुस्तान
कोई कहता है हिन्दू को बचाओ कोई कहता है मुसलमान को बचाओ
पर ना हिन्दू मर रहा है और ना
मर रहा है मुसलमान
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिंदूस्तान
भेज देती हैं माये अपने सपने अपनी उम्मीदे और अपनी ममता
के अनमोल कलश को सरहद पर
लड़ने के लिए
पर सरहद के दोनो तरफ एक इंसान ही तो मर रहा है। इस सरहद पर गिरे या उस सरहद पर
गिरे रक्त तो किसी इंसान का ही गिर रहा है। सहम गया है उस माँ
का दिल जिसके जिगर का टुकड़ा
सरहद से ध्वज में लिपट के घर
आया। उसके सूखे आंसू देख माँ भारती का दिल भी है नाआराम
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा है हिंदुस्तान
रो भी नही पाता वो पिता अपने पुत्र की शहादत पर जिसने उसके बचपन को उंगली पकड़ के चलना सिखाया था।
देश भक्ति का जज्बा उसी ने तो
अपने कुलवंश के सीने में जगाया था। पत्थर हो जाती थी आंखे जिसकी छुट्टियों के इन्तेजार में
वो इन्तेजार उसकी अंतिम यात्रा
पर हो गया है निष्प्राण ।
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा है हिंदुस्तान
सरहदे बढ़ती जा रही है एकता
मरती जा रही है । कभी जो चार
भाई आजादी के लिए एक ढाल
बनकर लड़े थे तिरंगे की खातिर
आज वो एक दूसरे के पाटीदार हो
गए स्वतंत्र भारत का सपना एकता का भाव इतिहास के पन्नो
का हो कि रह गया है ग़ुलाम।
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिंदुस्तान
अगर आज भारत मे एकता होती तो क्या चीन भारत पे आंख उठा
पाता क्या पड़ोसी घर मे घुस के आंख दिखा पता
घर के भीतर पड़ि फुट को भांप गया था ये शैतान तभी तो
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिन्दुस्ता

सोनिया प्रतिभा तानी
9319928360

18.

अरे ओ चिन्दी चीन
तेरी बजा देंगे बीन

खाया अबतक मीठा मीठा
अब खिलाएंगे नमकीन ।।

दुस्साहस किया है तूने
बजा देंगे तेरा अब बैंड ।

समझे क्या तू खुद को
तेरी कब्र पे डालेंगे सैंड ।।

हमारी जन्म भूमि पर गर
तू टेढी नजर अब डालेगा ।

आंखें तेरी फोड देंगे और
बच्चा बच्चा काट डालेगा

  सुरेन्द्र मिन्हास बिलासपुर hp
7018927464

19.

दोहे -         (१)

घटिया चीनी लोग हैं ,घटिया इनकी सोच ।
दोस्त बनाते हैं जिसे ,खाते उनको
नोच ।

२) चीनी  बतलाएँ  तुझे, क्या  तेरी
औकात ।
उलझ न हमसे जान ले ,ना करना अब घात ।।

४)  आँख उठा पछतायगा,सुन बौने की जात ।
दूर अगर हटता नहीं , देंगे तुझको
मात ।।

५)  तिलचट्टे सी आँख है ,गंध जहाँ का खाए ।
     समझाएँ हम प्यार से, समझ न तेरे आए ।।

६)  धोखे का अन्जाम यहाँ,क्या होता सिखलाएँ ।
      अगर नहीं  माना फिर , तेरा नाम मिटाएँ ।।

७)  भारत सबका बाप है, जाने है ये सन्सार ।
जो ना माने प्यार से , रखते नहीं
उधार ।।

७) ऋषियों की पावन भूमि , पर आँच नहीं आए ।
दुश्मन  की  छाती  पर है ,  झंडा
लहरा आए ।।

८)  तू बर्बाद हुआ चीनी , गर बात
न मानेगा ।
      एक फुलझडी़ के जलते , सरहद से भागेगा ।।

९)  गलवान की सरहद पर, सपने देखे न  अब ।
     गर  बात न मानेगा तू , गद्दार मिटेगा अब ।।

अभी २घर आई हूँ स्वीकार करें ।

    डाः नेहा इलाहाबादी ( दिल्ली )
      १९१, बसंत अपार्टमेंट ,
          बसंत -  विहार ,
             नयी दिल्ली - ११००५७
20.

धोखेबाज  नै,  चाला  करा  कसूत।
बातों  से   ना  मानता,  दिखे  लात का भूत।
दिखे  लात का  भूत,  प्यार तै नहीं सुधरता।
देख  बात  बेबात,  टीच  वो  हरदम  करता।
करकै डूक्कम डूक,  नाक नै  करदो चपटी।
चलै चाल पै चाल,  ड्रैगन बण  गया कपटी।

                - भूपसिंह 'भारती'


21.

सियासती गिद्ध के पंजों में शिकार की तरहा फस के रह गया है हिंदुस्तान
कोई कहता है हिन्दू को बचाओ कोई कहता है मुसलमान को बचाओ
पर ना हिन्दू मर रहा है और ना
मर रहा है मुसलमान
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिंदूस्तान
भेज देती हैं माये अपने सपने अपनी उम्मीदे और अपनी ममता
के अनमोल कलश को सरहद पर
लड़ने के लिए
पर सरहद के दोनो तरफ एक इंसान ही तो मर रहा है। इस सरहद पर गिरे या उस सरहद पर
गिरे रक्त तो किसी इंसान का ही गिर रहा है। सहम गया है उस माँ
का दिल जिसके जिगर का टुकड़ा
सरहद से ध्वज में लिपट के घर
आया। उसके सूखे आंसू देख माँ भारती का दिल भी है नाआराम
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा है हिंदुस्तान
रो भी नही पाता वो पिता अपने पुत्र की शहादत पर जिसने उसके बचपन को उंगली पकड़ के चलना सिखाया था।
देश भक्ति का जज्बा उसी ने तो
अपने कुलवंश के सीने में जगाया था। पत्थर हो जाती थी आंखे जिसकी छुट्टियों के इन्तेजार में
वो इन्तेजार उसकी अंतिम यात्रा
पर हो गया है निष्प्राण ।
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा है हिंदुस्तान
सरहदे बढ़ती जा रही है एकता
मरती जा रही है । कभी जो चार
भाई आजादी के लिए एक ढाल
बनकर लड़े थे तिरंगे की खातिर
आज वो एक दूसरे के पाटीदार हो
गए स्वतंत्र भारत का सपना एकता का भाव इतिहास के पन्नो
का हो कि रह गया है ग़ुलाम।
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिंदुस्तान
अगर आज भारत मे एकता होती तो क्या चीन भारत पे आंख उठा
पाता क्या पड़ोसी घर मे घुस के आंख दिखा पता
घर के भीतर पड़ि फुट को भांप गया था ये शैतान तभी तो
थोड़ा थोड़ा कटरा कटरा मर रहा
है हिन्दुस्ता

सोनिया प्रतिभा तानी
9319928360

22.

सबकी नजर में वो पड़ौसी लगता

पर अपनी नजर में वो दोषी लगता

वो कहता कुछ और करता है कुछ

वह छोटी आँखों में मदहोशी रखता

हर बार हम आदत से छले जाते हैं

इस कारण घर में सर्प पले जाते हैं

वो 'राष्ट्र-नीति' में ना समझोता करता

करीबी रिश्तों में जो कम निष्ठा रखता

वो घाती, घात उसका दिखता हरपल

पहले भी आज दिखेगा आगे भी कल

शठ को शठता से ही समझाना होगा

शौर्य संग, कूटनीति  से हराना होगा

गलतियाँ कर चुके दोहरानी ना फिर 

अबकी बार चीन को पछताना होगा

                   - व्यग्र पाण्डे

     कर्मचारी कालोनी,गंगापुर सिटी (राज.)

                 पिन नं. 322201

23.

जिसे हमने अपने मित्र की तरह पाला सदा।
जिसके दुष्कर्मो को हमने नज़र अंदाज़ किया सदा।।
आज वही हमारी ओर आंखे दिखलाता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो ,
एक दिन अपना रंग दिखाता है।।

पड़ोसी की तरह हमने सदा ही साथ निभाया है,
अपना ज्यादातर वक़्त उसकी सेवा में बिताया है,
उसने एक बार नही कई बार हमें हर मोड़ पे सताया है,
फिर से एक बार गिरगिट ने रंग दिखाया है।।

हमने तो दिया हर कदम शांति का परिचय,
उसको लगता रहा कि हमें हैं उससे भय,
अच्छाई का फल सदा दुख ही दिखलाता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अपनो से बढ़कर जिसे आजतक हमने पूजा है,
हमारा तो ध्येय अतिथि देवो भव ,कोई और न दूजा है।
फिर भी नमक हलाल को सन्मार्ग न सुझा है,
अपना कहकर अपना ही अपनो को सताता है,
शत्रु कितना भी क्यों न मीठा हो,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अपने ही वचन का उल्लंघन हर दम वो करता है,
अपनी हर जरूरत को वो हम से पूरी करता है।।
फिर भी वो कपटी, हमको ही घुर्राता है,
शत्रु कितना भी मीठा क्यों न हो ,
एक न एक दिन रंग दिखाता है।।

अब सावधान हो जाओं तुम,
हुम पहले जैसे दयावान नहीं,
बुरी नज़र वाले का अपने देश मे,
होता कोई सम्मान नहीं।
ये भारत भी अपनी शक्ति का एहसास दिलाता है,
रंग बदलने वालों को, उसकी औकात दिखाता है।।

बहुत हुआ अब साथ निभाना,
अब जरूरी है कदम बढ़ाना।
ईंट का जबाब ईंट से  देना ,
देखेगा बदलता इतिहास जमाना।

तेरी अकड़ को प्यारे तोड़ कर रख देंगे हम,
घमण्ड यहाँ टिकता नही किसी का ,
तुझे चूर -चूर कर देंगे हम।
जो तुझे है अपनी सेना पर घमण्ड,
 तो हम भी हटने वाले नहीं।
जो भिड़ंत इस बार यदि होगी,
तो तू कहीं दिखने वाला नहीं।।

चोरी ,डकैती और छीना- झपटी,
तेरा हमेशा ही शौक रहा ,
अपनो के साथ रहकर तू हमेशा,
अपनों में ही छुरा घौप रहा।।

तेरी भी कमीं नही ,तेरी फितरत ही ऐसी है,
तू तो अपनो का ही नहीं,
तेरी अपनो की हालत भी फकीरों जैसी है,
चल संभल जा है वक़्त मिला,
जो बात तुझे समझ आ जाये,
भारत से पंगा लेगा फिर भारत कोहराम मचाये  ।।




जितेन्द्र शर्मा( आपका जीत दिल जीत)

ग्राम व पोस्ट जैतरा
धामपुर (बिजनौर)

***************
24.


चीन देश धूर्त,गद्दार है,
नहीं किसी से प्यार है,
भारत के सामने आये,
निश्चित समझो हार है।

1962 में  देखा हमने,
भाई-भाई का दे नारा,
खंजर पीठ में  उतारा,
दोष था चीन का सारा।

उल्लंघन करता बार बार,
करता है वो अत्याचार,
वीर सैनिक उन्हें छोड़ते,
दिखाएंगे खडग़ की धार।

बच जा बच जा मौका,
आदत तेरी देना धोखा,
भारत समक्ष जो बोला,
उसको मारपीट ठोका।

बहुत हो चुका दुष्ट सुन,
युद्ध की है तेरे सिर धुन,
देखना मजा जब आयेगा,
वीर मारेंगे तुझे चुन चुन।।
*******************
स्वरचित, मौलिक रचना
*******************
*होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा
  फोन 09416348400

25.

भारत की क्या बात कहें,
है बात उसकी सबसे निराली,
न किसी से बैर, न किसी से दूरी,
बस मानवता का पाठ पढ़ाने रहता सबसे आगे।

लेकिन इसका यह मतलब नहीं,
कि जो चाहे आंख उठा ले,
अगर डालता कोई भी बुरी नज़र,
तो देना जानता मुंहतोड़ जवाब भारत।

चीन को समझा उसने हमेशा अपना हितैषी,
एक बार नहीं क‌ई बार चीन बन गया विरोधी,
बार-बार समझा-समझाकर, हाथ मिलाकर,
बात कभी बनती-बात कभी बिगड़ती।

भारत की नज़र में चीन है एक,
दोस्त कम! व्यापारिक साथी ज्यादा,
जिसने साथ निभाया कम,
पर धोखा दिया ज्यादा।

अपना भारत वो देश है,
जिसको लगें सब अपने से,
फिर चाहे वह चीन हो या हो,
और कोई भी पड़ौसी देश।

भारत की नज़र में चीन,
है एक पड़ौसी देश,
तू-तू-मैं-मैं करते-करते,
रहेंगे हमेशा पड़ौसी देश।

जय हिन्द जय भारत

मौलिक रचना
श्रीमती- नूतन गर्ग
ई-708, नरवाना अपार्टमेंट,
89 आई०पी०एक्सटैंशन,
देहली,110092

26.

भारत की नजर में चीन
एक पडोसन की तरह है
फरेबों को कौन समझाए
भारत शांति का चमन है ॥

अब दिल में ठाण लीजिए
शांति हमारी संस्कृति है
अन्याय सहकर न बैठेंगे
शौर्य हमारी जीवनगति है ॥

भारत एक विश्वगुरु है
भारत एक पुण्यभूमि है
भारत के सपूत तत्पर है
दुश्मन ऊर रणभूमि है ॥

भारत मुकर्रर नहीं सिकंदर है
बीस का बदला बीस लाख है
ऊपरवाले हमारे साथ हैं
हमारा कर्म धर्म सदा पाक है ॥

सरहद पर हमारे भाई हैं
साथ कोटि-कोटि हाथ है
एक इशारे में जलकर खाक हो
पीछे देख कौन साथ है ॥

भारत की नजर नेक है
आज भी धरती पर स्वर्ग है
अभी सुधर जा दुश्मन न तो
समझो धरती नसीब में नहीं है ॥

डॉ. सुनील कुमार परीट
1260 शारदा सदन एयरपोर्ट रोड महादेव नगर सांबरा 591124 जि बेळगांव कर्नाटक
मो 8867417505

27.

प्रतिशोध
भारत को दिया चीन ने धोखा,
पीठ में खंजर है घोंपा,
धोखा दे,साम्राज्य विस्तार करे,
यह है उसकी कुचालें,
मुंह में राम बगल में छुरी,
काली करतूतें दिन प्रतिदिन बढ़ी,
1993 का कर रहा उल्लंघन ,
नहीं चलेगी उसकी मनमानी,
भारत में व्यापार फैला रहा,
सीमा पर हथियार जमा रहा,
उसका रावणत्व जाग उठा,
उसके नापाक इरादों का,
मुंहतोड़ जवाब देना होगा,
एलएसी पर पांच जगहों पर,
उसकी सेना हो रही इकट्ठी,
सिक्किम अरुणाचल में भी चाल चली,
पाक और नेपाल को  भी उकसा रहा,
कोरोना वायरस पर पोल खुली,
फिर जैविक हथियारों की बात करी,
समाजवादी गणराज्य होकर,
साम्राज्यवादी नीति पर चल रहा,
जात- पात ,धर्म राजनीति से,
हमें ऊपर उठ,
एकजुट होना होगा ,
याद रखो!1962 का बदला बाकी ,
20 सैनिकों का बदला भी बाकी ,
घर में घुसकर व्यापार फैला कर,
जुर्रत उसने जो की,
उस पर विचार हो,
हे वीरों!शपथ तुम्हें,
जो भारत पर नजर डाले,
उसको लोहे के चने चबवा दो तुम,
यह वीरभूमि है भारत की,
यह शौर्य पराक्रम की भूमि है,
कोई धोखा नहीं चलेगा,
लेना है अब प्रतिशोध केवल,
प्रतिशोध ही है बाकी।
पता:-
प्रज्ञा गुप्ता w/o श्री दिलीप कुमार गुप्ता,बाँसवाड़ा,(राज.)

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